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हमारे परिवार पर ईश्वर की बड़ी खृपा थी, सब कुछ अच्छा चल रहा था कि तभी एक दुरघटना में पापा चल बसे.

उसके बाद मेरी शादी हुई तो बीवी से जगडा हो गया.

वो चली गई.

ककशा बारा उत्तीरन करने के बाद मैं अपने पापा के साथ दुकान पर बैठने लगा.

कानपुर के एक मार्किट में हमारी कपड़े की दुकान थी.

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