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सरपंच एक एक कपड़े को धूबन के शरीर से बड़े नाज़ुत अंधास हैं।
हर उतरते कपड़े के साथ धोबन का जिसम और महदब हो जा रहा था। सरपंच धोबन के जवानी का रस चूस रहा था।
खमोष रहते हुए भी धोबन ने सरपंच की हर हरकत का खुलके समर्थ हैं गिया।
दोनों के कपड़ें शरम और लिहास के सीमाओं के परे जा जुगें।
दोनों के नंगे जिसमें एक पत्ली सी चागन नाग और नागन की परें लिप्टे हुए थे।