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अपनी पढ़ाई को लेकर ज़्यादा सीरियस था क्योंकि उसको डॉक्टर बनना था और हमें रुपय पैसे की कोई कमी नहीं थी
क्योंकि मा बाबा की गवर्मेन जब की वज़ज़े उनकी पेंशन हमें मिलती थी और कि बाबा ने हमारे लिए मार्केट में पाँच दुखाने लेकर
किराये पर चढ़ा रखी थी तो इस सब से इतना पैसा आ जाता था कि हमारा घर बहुत अराम से चल रहा था
और हम किसी की महताज नहीं थे और कि गुझरते वक वक के साथ धीरे धीरे मामा ने भी हमारे पास चकर लगाना छोड़ दिया था
मगर अब मैं अकेले अपने घर को चलाने में माहिर हो चुकी थी और किसी की नहीं होने से मुझे कोई फर्प नहीं पड़ता था