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उन्हें मेरी साड़ी का पल्लू खीचा और कहा अब तो रुक जाओ वर्ना मैं खुद को रोक नहीं पाऊंगा

मैं ठिठक गई थी इतनी देर से जो खेल चल रहा था अब खुलकर सामने आ चुका था

मैं नेहा हूँ एक स्कूल में हिंदी की ठीचर उम्र में तो बहुत नहीं बस 26 की हूँ

लेकिन छेहरे और बर्ताव में ऐसी गंभीरता है कि कई बार छात्र भी मुझे मैडम कहने की बजाए दीदी कह बैठते हैं

मगर ये कहानी किसी छात्र की नहीं बलकि उस आदमी की है जिसने मेरी जिन्दगी को उस दिन के बाद पूरी तरह बदल दिया

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